रविवार, 5 अप्रैल 2015

चौदहवीं किस्तः जूनियर किशोर कुमार और मैं..

हराइच के पास रिसिया नामक कस्बे में भी संगीत के शौकीन लोगों की कमी नहीं थी। उन दिनों वहां गीत-संगीत के माध्यम से एक चेरिटी शो का आयोजन किया गया था, जिसमें मैं भी आमंत्रित था। मेरे संगीत के मास्टर श्री श्रीवास्तव जी मुझे वहां लेकर गये थे। उस कार्यक्रम में श्रोताओं की भारी भीड़ थी। मेरे जीआईसी के संगीत के शौकीन हमारे प्रिंसिपल श्री वसीमुल हसन रिज़वी साहब भी वहां अपने किन्हीं मित्रों व रिश्तेदारों के साथ मौज़ूद थे। पर शायद उन्हें मेरा इस तरह के कार्यक्रमों में जगह-जगह जाना उन्हें पसंद नहीं था, अतः उन्होंने वहां मेरे पहुंचने पर कोई खास प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। अलबत्ता वो हमारे संगीत के गुरू जी से भी कुछ अनमने भाव से ही मिले। उस समारोह में मुंबई और लखनऊ से भी अनेक बेहतरीन गायक कलाकारों को बुलाया गया था। उनमें मुंबई से जूनियर किशोर कुमार भी आमंत्रित थे, जो शक्ल-सूरत और हाव भाव से तो किशोर कुमार जैसे थे ही किशोर कुमार के गाने भी बहुत खूबसूरती से पेश करते थे। कलाकारों के बीच एक बालक किशोर कुमार मैं भी था परन्तु मैं तो अपनी पतली आवाज़ के चलते लता जी के गाने ही ज़्यादा गाता था और आयोजक भी प्रायः मुझे इसी वजह से संगीत के कार्यक्रमों में आमंत्रित करते थे।

कार्यक्रम के दौरान जहां जूनियर किशोर कुमार ने उस समय के किशोर कुमार के हिट गीत बेहतरीन अंदाज़ में प्रस्तुत किये वहीं मेरी प्रस्तुति भी कम ज़ोरदार नहीं रही। उस दिन जूनियर किशोर कुमार ने मेरे गानों पर खुश होकर मुझे पूरे 21 रुपये ईनाम स्वरूप प्रदान दिये। तब 21 रुपयों की कीमत आज की तुलना में बहुत ही ज़्यादा थी। मैं उनसे यह राशि नहीं लेना चाहता था पर स्टेज पर थोड़ी-बहुत आना-कानी, भागम-भाग और श्रोताओं की तालियों की गड़गड़ाहट के बीच अंततः मुझे उनके हाथों वह पुरस्कार राशि लेनी ही पड़ी। मुंबई के इतने बड़े कलाकार के हाथों ईनाम मिलने सेे मेरी खुशी उस वक़्त काफी बढ़ गई थी। मुझे लगा कि जब इतना बड़ा कलाकार मुझ साधारण से बच्चे के गाने पर इतना बड़ा ईनाम दे सकता है तो मुझे भी उस बड़े कलाकार का कुछ सम्मान करना चाहिये। और इस तरह से जब जूनियर किशोर कुमार पुनः अपना एक गाना समाप्त करके वापस आने को हुए तो मैं भी उनके गाने पर खुश होकर उनकी हौसला आफ़जाई के लिये उन्हें ईनाम देने मंच पर पहुंच गया था। जब मैंने उनकी ओर अपना हाथ बढ़ाया और उन्होंने मेरे हाथ से एक रुपये का नोट लेकर दर्शकों को दिखाते हुए उनकी ओर लहराया तो मेरी इस मासूमियत पर पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। दरअसल मैंने उन्हीं के दिये रुपयों में से एक रुपये का नोट निकालकर उन्हें पुरस्कार स्वरूप देना चाहा था। बाद में उन्होंने मुझे वह नोट ज़बरन वापस करते हुए अपने सीने से लगा लिया था।  

05 अप्रैल,15 (शेष अगली किस्त में)