गुरुवार, 22 अक्तूबर 2015

उन्नीसवीं किस्त: बचपन का दशहरा

ता नही तब हमारा बचपन था इसलिये हम प्रत्येक त्यौहार का भरपूर आनन्द उठा पाते थे या उस समय के त्यौहारों की ख़ुशबू ही ऐसी थी कि उनमें कोई भी मदहोश हो जाता था। ख़ैर सच जो भी हो हम उस आनन्द को भला कैसे भूल सकते हैं जिनमें हमारी हर ख़ुशी के समय हमें अपने माता-पिता, भाई-बहनों और प्यारे-प्यारे मित्रों का संग-साथ मिलता था और हम हर त्यौहार का भरपूर आनन्द उठा पाते थे। तब हम हिन्दू-मुस्लिम, सिख या ईसाई नहीं थे। न छोटी जात, न बड़ी जात, न अगड़े और न पिछड़े। हम तो बस अपनी ख़ुशियों में एक-दूसरे को शरीक करने वाले बच्चे भर थे। हम सब मिलकर ही हरेक पर्व का आनन्द उठाते थे। अब से अलग हटकर तब हमारे शहर बहराइच में शहर से दूर रामलीला मैदान में 10 दिन तक भव्य रामलीला का आयोजन होता था। रामलीला मैदान के चारों ओर दर्शक और बीच के पूरे मैदान में विभिन्न पात्रों द्वारा तरह-तरह की वेशभूषा में रामलीला का मंचन। भारी भीड़ के बीच हम रामलीला के एक-एक दृश्य का भरपूर आनन्द उठाते थे। दशमी के दिन बड़ा-सा रावण, ढेर सारी आतिशबाजि़यों के बीच जब   धू-धू करके जलता, तब उसे जलता हुआ देखकर हमें इस बात की तसल्ली होती कि अब दुनिया सेे सारे पाप सदा के लिये मिट जायेंगे।

ऐसे त्यौहारों पर घर से लेकर रामलीला मैदान तक के लम्बे रास्ते पर खेल-खिलौनों और खाने-पीने की सैकड़ों दूकाने होतीं। पूरा परिवार भीड़ के चलते रास्ते भर एक-दूसरे की अंगुली कस कर पकडे़ रहता। रास्ते भर हम कुछ-न- कुछ खाते-पीते, दो-चार रुपये में ही ढेर सारे खिलौने ख़रीदते या बाइस्कोप आदि देखते और त्यौहार का पूरा आनन्द उठाते हुए आते और जाते। हम भीड़ के साथ ही वहां तक पहुंचते और उसी तरह से वापस आते। कभी पैदल तो कभी रिक्शे और कभी इक्के या तांगे पर बैठकर वहां तक पहुंचने का कुछ अलग ही आनन्द मिलता था। उस दिन घर में भी कुछ अलग हट कर पकवान आदि बनते। यही वजह थी कि हमें पूरे साल इन त्यौहारों का इंतज़ार रहता। 

त्यौहारों पर माता-पिता के पास भी हमारे लिये पूरा समय होता। हमें भी लम्बे समय की छुट्टी तो मिलती ही थी, होमवर्क आदि का ऐसा कोई बोझ भी नहीं होता था कि हमें त्यौहार, तनावों के बीच मनाना पड़े या सारा त्यौहार घर में ही बैठकर वाट्सअप या फेसबुक पर एक-दूसरे को शुभकामना संदेश कट-पेस्ट करते हुए ही बीत जाए। त्यौहार पर न कोई नकली व्यवहार था और न कोई काल्पनिक ख़ुशी। तब सब कुछ बस ओरीजनल ही होता था।

22 अक्तूबर,15 
(शेष अगली किस्त में)