शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

वो भूली दास्तां लो फिर याद आ गई: तीसवीं किस्तः बारिश की फुहार और सार्वजनिक अभिनंदन...

वो भूली दास्तां लो फिर याद आ गई: तीसवीं किस्तः बारिश की फुहार और सार्वजनिक अभिनंदन...:       बा त वर्ष 1976  की है। उन दिनों विद्यालयों में एडमीशन का दौर चल रहा था। हम भी सज-संवर कर दोस्तों के साथ एडमीशन के लिये विद्यालय ज...

1 टिप्पणी:

  1. जब जागो तभी सवेरा ,जाने अनजाने कई गलतियां हमसे हो जाती है ,बड़ी बात है उसे स्वीकार लेना ,सुधार लेना ,बहुत बढ़िया

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