
अपनी कला का प्रदर्शन करने वाले कलाकारों की एक झलक पाने के लिये हम ठण्ड, गर्मी या घूप की भी परवाह नहीं करते थे। और उनके ठहरने के स्थान पर निरन्तर चक्कर लगाते रहते थे। घर में कलाकारी का माहौल होने के बावजू़द नाते-रिश्तेदारों को यह सब ज़्यादा पसंद नहीं था। दरअसल उस वक्त थियेटर के छोटे-मोटे कलाकारों/डांसरों आदि को आज की तरह बहुत अधिक सम्मान भी नहीं प्राप्त था। आसपास के लोग या समाज क्या कहेगा के चक्कर में घर वाले हमें उनके ज़्यादा नज़दीक भी नहीं जाने देना चाहते थे। इसके विपरीत मेरे और मुन्ना भैया के ऊपर फिल्म और उन कलाकारों का, बेश कवे छोटे ही रहे हों; नशा हर वक्त छाया रहता था।
एक बार जब ऐसे ही कुछ कलाकार ओंकार टाकीज में अपनी कला का प्रदर्शन करने आये हुए थे तब बार-बार उनके चक्कर लगाने से मुन्ना भैया की उनसे खासी पहचान हो गई थी। और उस दिन तो मुन्ना भैया और मेरी खुशी का ठिकाना ही न रहा जब उनमें से एक बेहतरीन डांस कलाकार हमारे आग्रह पर हमारे घर तक चला आया था। किसी अपरिचित और छोटे डांस कलाकार को घर के दरवाजे पर देखकर पडौसियों में तो काना फूसी हुई ही घर के लोग भी किसी अनिष्ट की आशंका से घबरा-से गये।
मुन्ना भैया ने उस कलाकार को घर के भीतर बैठालने या उसकी आवभगत करने की कोशिश की पर सफल नहीं हो सके। लोक-लाज़ के डर से उसे घर के भीतर लाने की अनुमति नहीं मिल सकी और अंततः बेचारे कलाकार को अपमानित सा होकर वापस जाना पड़ा।
हमें काफी समय तक उस कलाकार का यह अपमान सालता रहा था क्योंकि हम खुद कला क्षेत्र से जुड़े हुए थे और हम कला तथा कलाकारों के कद्रदान भी काफी थे।
3 मई,2016 (शेष अगली किस्त में)