शनिवार, 31 जुलाई 2021

32वीं किस्तः गोरा और काला

र में हम छः भाई-बहनों में मैं चौथे नंबर की संतान था। मुझसे ऊपर दो भाई और एक बहन और मुझसे नीचे दो बहनें। उस ज़माने में घर में संतानों की संख्या की कोई गणना नहीं होती थी। बड़ा परिवार हो या छोटा परिवार, सभी अपने-अपने हिसाब से फूलत-फलते और पलते रहते थे। हम पर खेल-कूद और शैतानियों का बोझ भले ही रहा हो, आज के समय का 99 और 100 प्रतिशत की मारा-मारी वाला पढ़ाई-लिखाई का बोझ नहीं था। बस खेल-कूद से फुर्सत पाकर किताब खोलकर सबके सामने बैठकर पढ़ते रहो, रिजल्ट जो भी रहे। घर में पढ़ने में सबसे होशियार सबसे बड़ी मंजू दीदी थीं, फिर मझले भैया मुन्ना जी और मुझसे छोटी बहन सृष्टि। बाकी बड़े भैया, मैं और दूसरी छोटी बहन पढ़ाई में औसत दर्जे़ के थे और बस पढ़ाई-लिखाई का फर्ज़ निभाते हुए बड़े होते जा रहे थे। जहाँ तक चेहरे-मोहरे की बात थी। घर में ज़्यादातर सभी गोरे या साफ रंग के थे और मैं 1972 में आई राजेन्द्र कुमार की प्रसिद्ध फिल्म गोरा और काला वाला काला।


मुझे अपनी कलाकारी के चलते जहाँ सबसे खूब प्यार और सम्मान मिलता वहीं, शैतानी के चलते घर में पिटाई का सुख भी मुझे ही ज़्यादा मिलता। हालांकि घर में मुझे अक्सर कुछ पछपात भी देखने को मिलता। दरअसल किसी खुराफात में मेरी व दोस्तों की मानीटरिंग तो मुन्ना भैया करते थे और अक्सर शैतानियों में पूरी भागीदारी भी निभाते थे लेकिन पिटाई के समय घर वालों की पकड़ में मैं ही आता था। प्रायः घर के बड़े बराबरी की शैतानी पर भी अकेले मुझे ही "कलुवा शैतान कहीं" का कहकर कूट डालते थे। इससे मेरे मन में यह बात घर करती चली गई थी कि मेरी 
पिटाई, मेरी गल्तियों की वजह से कम मेरे काले रंग की वजह से ज़्यादा होती है। अगर ऐसा न होता तो बार-बार अकेले मुझे ही क्यों पिटना पड़ता, वह भी कलुवे के तमगे के साथ। 

फिर क्या था, गोरे होने की कामना के साथ ही मैंने 16 शुक्रवार का व्रत रखना शुरू कर दिया था। मैं देवी माता या किसी भी अन्य देवी-देवता से अपने लिये और कुछ नहीं बस थोड़ा-सा गोरा बना देने की ही मनौती मांगता। गोरा होने के लिये मैंने स्वनिर्मित अनेक घरेलू उपचार भी किये और बाज़ार से क्रीम-पाउडर लाकर भी चेहरे पर खूब मला। 

अब इन सबका मुझे कोई खास लाभ मिला या नहीं लेकिन एक बार पिटाई होने के बाद रोते हुए जब मेरे मुख से यह निकला कि काश मैं मुन्ना भैया होता तो मेरे साथ इतना भेदभाव न होता और मेरी ही बात-बात में अकेले इतनी पिटाई न होती, तब इस बात का ऊपर तक असर हुआ था। 

मेरी इस बात पर मुझे बड़ों ने पुचकार कर गले तो लगाया ही, मेरे दिमाग में घुसा काले-गोरे का फितूर भी हटाया और उन्होंने  ऐसे अनेक काले लोगों के उदाहरण भी दिये जो अपनी सूरत की वजह से नहीं बल्कि सीरत की वजह से जाने गये और जीवन में बहुत आगे भी गये। g

  

31 जुलाई,2021 (शेष अगली किस्त में)