शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

वो भूली दास्तां लो फिर याद आ गई: तीसवीं किस्तः बारिश की फुहार और सार्वजनिक अभिनंदन...

वो भूली दास्तां लो फिर याद आ गई: तीसवीं किस्तः बारिश की फुहार और सार्वजनिक अभिनंदन...:       बा त वर्ष 1976  की है। उन दिनों विद्यालयों में एडमीशन का दौर चल रहा था। हम भी सज-संवर कर दोस्तों के साथ एडमीशन के लिये विद्यालय ज...

तीसवीं किस्तः बारिश की फुहार और सार्वजनिक अभिनंदन


     बात वर्ष 1976 की है। उन दिनों विद्यालयों में एडमीशन का दौर चल रहा था। हम भी सज-संवर कर दोस्तों के साथ एडमीशन के लिये विद्यालय जा पहुंचे थे। हमारे हाथों में एडमीशन की फीस भी घर वालों ने थमा रखी थी। बारिश का मौसम होने के चलते उन दिनों लगातार घनघोर बारिश हो रही थी। हम भींगते-भींगते ही किसी तरह से विद्यालय पहुंचे थे। भीषण बारिश और मौसम अत्यन्त खराब होने के चलते अचानक विद्यालय की एक हफ्ते की छुट्टी घोषित कर दी गई थी। उस दिन किसी का एडमीशन भी नहीं हुआ था। किसी तरह से छिपते-छिपाते हम 4-5 दोस्त विद्यालय के सामने स्थित लक्ष्मीबाई पार्क में जाकर एक घने पेड़ की ओट में जाकर खड़े हो गये थे। उसी समय किसी ने अफवाह फैला दी कि विद्यालय अब अगले डेढ़ माह तक बंद रहेगा और एडमीशन भी डेढ़ माह बाद ही होगा। 

     यह खबर पाकर हमारे भीतर का शैतान और खुराफाती दिमाग जाग उठा था। हम दोस्तों ने आपस में तय करके घर वालों से यह झूठ बोल दिया कि हमने फीस जमा करके विद्यालय में एडमीशन ले लिया है। हमने सोचा था कि अब तो एडमीशन का पैसा डेढ़ माह बाद ही जमा होगा तो तब की तब देखी जायेगी फिलहाल इन पैसों का घूमने-फिरने, सिनेमा देखने और खाने-पाने में खर्च कर जीवन का कुछ लुत्फ उठाया जाये। और फिर हमने अगले ही दिन से फीस के पैसों का मौज-मस्ती के लिये इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था। हम दोस्तों ने एक-दूसरे दोस्त के घर जाने के बहाने 4-5 दिनों में ही अपनी फीस के सारे पैसे फिल्म देखने, होटलबाजी और घूमने-फिरने में निपटा दिये थे।

     इधर विद्यालय अगले हफ्ते खुल गये थे और इससे अनभिज्ञ हम अभी भी मस्ती में ही डूबे हुए थे। बात आगे बढ़ी और मामला जब सबके घरों तक पहुंचा तब हमारे पैरों के नीचे से ज़मीन ही खिसक गई थी। अब तक फीस के पैसे खा-पीकर उड़ा देने की खबर भी हम सबके अभिभावकों तक जा पहुंची थी। उसके बाद हम सभी की अच्छी-खासी कभी न भूलने वाली हजा़मत बनी और साथ ही सार्वजनिक अभिनंदन हुआ सो अलग विद्यालय के सहपाठियों और शिक्षकों के बीच हमारी खिल्ली भी खूब उड़ी। 

     हम अपनी झूठ पकड़े जाने पर शर्मिन्दा तो थे ही डेढ़ माह के लिये स्कूल बंद होने की अफवाह उड़ाने वाले सहित इस बेवकूफी भरे आइडिया के लिये एक-दूसरे पर दोषारोपण करने में भी जुट गये थे। साथ ही उसी दिन हम सभी ने कान पकड़ कर फिर कभी किसी अफवाह और ऐसे फरेब का हिस्सा न बनने की कसम भी खाई।

10,  अप्रैल,2020 (शेष अगली किस्त में)