
यह खबर पाकर
हमारे भीतर का शैतान और खुराफाती दिमाग जाग उठा था। हम दोस्तों ने आपस में तय करके
घर वालों से यह झूठ बोल दिया कि हमने फीस जमा करके विद्यालय में एडमीशन ले लिया
है। हमने सोचा था कि अब तो एडमीशन का पैसा डेढ़ माह बाद ही जमा होगा तो तब की तब
देखी जायेगी फिलहाल इन पैसों का घूमने-फिरने, सिनेमा देखने और खाने-पाने में खर्च कर जीवन का कुछ लुत्फ
उठाया जाये। और फिर हमने अगले ही दिन से फीस के पैसों का मौज-मस्ती के लिये
इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था। हम दोस्तों ने एक-दूसरे दोस्त के घर जाने के बहाने 4-5 दिनों में ही अपनी फीस के सारे पैसे फिल्म देखने, होटलबाजी और
घूमने-फिरने में निपटा दिये थे।
इधर विद्यालय अगले हफ्ते
खुल गये थे और इससे अनभिज्ञ हम अभी भी मस्ती में ही डूबे हुए थे। बात आगे बढ़ी और
मामला जब सबके घरों तक पहुंचा तब हमारे पैरों के नीचे से ज़मीन ही खिसक गई थी। अब तक फीस के पैसे
खा-पीकर उड़ा देने की खबर भी हम सबके अभिभावकों तक जा पहुंची थी। उसके बाद हम सभी की
अच्छी-खासी कभी न भूलने वाली हजा़मत बनी और साथ ही सार्वजनिक अभिनंदन हुआ सो अलग। विद्यालय के सहपाठियों और शिक्षकों के बीच हमारी खिल्ली भी खूब उड़ी।
हम अपनी झूठ पकड़े जाने पर
शर्मिन्दा तो थे ही डेढ़ माह के लिये स्कूल बंद होने की अफवाह उड़ाने वाले सहित इस
बेवकूफी भरे आइडिया के लिये एक-दूसरे पर दोषारोपण करने में भी जुट गये थे। साथ ही उसी दिन हम सभी ने कान पकड़ कर फिर कभी किसी अफवाह और ऐसे फरेब का हिस्सा न बनने की कसम भी खाई।
10, अप्रैल,2020 (शेष अगली किस्त में)
ये उम्र का कसूर है ,जो अपने शौक पूरे करने के लिए नादानियाँ कर जाता है ,बढ़िया
जवाब देंहटाएंगलतियों पर पर्दा डालकर हौसला बनाये रखने का सादर शुक्रिया आदरणीया
हटाएंइतनी छोटी उमर में ऐसी शरारत! बचपन का दिन सच में बड़ा कमाल था. एक दम बेफिक्र. जब समय आएगा तब देखा जाएगा. रोचक संस्मरण. शुभकामनाएँ.
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