मुझे अपनी कलाकारी के चलते जहाँ सबसे खूब प्यार और सम्मान मिलता वहीं, शैतानी के चलते घर में पिटाई का सुख भी मुझे ही ज़्यादा मिलता। हालांकि घर में मुझे अक्सर कुछ पछपात भी देखने को मिलता। दरअसल किसी खुराफात में मेरी व दोस्तों की मानीटरिंग तो मुन्ना भैया करते थे और अक्सर शैतानियों में पूरी भागीदारी भी निभाते थे लेकिन पिटाई के समय घर वालों की पकड़ में मैं ही आता था। प्रायः घर के बड़े बराबरी की शैतानी पर भी अकेले मुझे ही "कलुवा शैतान कहीं" का कहकर कूट डालते थे। इससे मेरे मन में यह बात घर करती चली गई थी कि मेरी पिटाई, मेरी गल्तियों की वजह से कम मेरे काले रंग की वजह से ज़्यादा होती है। अगर ऐसा न होता तो बार-बार अकेले मुझे ही क्यों पिटना पड़ता, वह भी कलुवे के तमगे के साथ।
फिर क्या था, गोरे होने की कामना के साथ ही मैंने 16 शुक्रवार का व्रत रखना शुरू कर दिया था। मैं देवी माता या किसी भी अन्य देवी-देवता से अपने लिये और कुछ नहीं बस थोड़ा-सा गोरा बना देने की ही मनौती मांगता। गोरा होने के लिये मैंने स्वनिर्मित अनेक घरेलू उपचार भी किये और बाज़ार से क्रीम-पाउडर लाकर भी चेहरे पर खूब मला।
अब इन सबका मुझे कोई खास लाभ मिला या नहीं लेकिन एक बार पिटाई होने के बाद रोते हुए जब मेरे मुख से यह निकला कि काश मैं मुन्ना भैया होता तो मेरे साथ इतना भेदभाव न होता और मेरी ही बात-बात में अकेले इतनी पिटाई न होती, तब इस बात का ऊपर तक असर हुआ था।
मेरी इस बात पर मुझे बड़ों ने पुचकार कर गले तो लगाया ही, मेरे दिमाग में घुसा काले-गोरे का फितूर भी हटाया और उन्होंने ऐसे अनेक काले लोगों के उदाहरण भी दिये जो अपनी सूरत की वजह से नहीं बल्कि सीरत की वजह से जाने गये और जीवन में बहुत आगे भी गये। g
31 जुलाई,2021 (शेष अगली किस्त में)
माता पिता के लिए तो हर बच्चा बराबर है गोरा हो या काला हो। लेकिन काले के लिए अक्सर लोग कालू कलुआ कह देते हैं, भले वे प्यार से बोलें लेकिन बालमन में यह बात बैठ जाती है। गोरे काले के भेदभाव को सबसे पहले घर से ही हटाना होगा।
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