
एक बार मेरे एक मित्र मुझे राजेन्द्र प्रसाद स्कूल के प्रांगण में चल रहे एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में ले गये। वहां लखनऊ के एक नामी एंकर कलाकारों को बारी-बारी से मंच पर बुला रहे थे। किसी ने मेरे गाने की भी सिफारिश की। परन्तु एंकर महोदय की मेरे गायन में कोई रुचि नहीं थी अतः मेरे नाम की फरमाइश का भी उन पर कोई असर नहीं पड़ा। अलबत्ता ज़्यादा दबाव पर वह बीच-बीच में मेरा नाम अवश्य लेते जा रहे थे और कई बार उन्होंने मेरा हल्का सा परिचय देते हुए मेरे नाम का एनाउंसमेंट भी किया परन्तु कलाकारों की भीड़ में मुझे अपनी प्रतिभा दिखाने का वह मुझे कोई मौका नहीं दे पाये।
उस उम्र तक शायद मेरे लिये यह पहला मौका था जब मैं किसी मंच पर एक गाना गाने के लिय भी तरस गया था। हालांकि जल्द ही मुझे उसी स्कूल के दुर्गा पूजा समारोह में आयोजित एक गायन प्रतियोगिता में गाने का मौका मिला। उस दिन मैंने ‘एक महल हो सपनों का’ फिल्म का गीत ‘देखा है जिंदगी को कुछ इतना करीब से, चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से...’ गाकर श्रोताओं के दिलों में जगह बनाने में कामयाबी पायी। प्रतियोगिता के किशोर वर्ग में उस दिन मुझे प्रथम पुरस्कार मिला और स्कूल प्रबंधक सक्सेना जी की बेटी मोहिनी सक्सेना को ‘अच्छे समय पर तुम आये कृष्णा’ गीत पर किशोरी वर्ग में प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ। उस दिन से सक्सेना परिवार से हमारी घनिष्ठता और भी बढ़ गई थी।
29 मई,2018 (शेष अगली किस्त में)