रविवार, 6 मई 2018

सत्ताइसवीं किस्तः नया शहर नये लोग नये अनुभव..

झांसी में रहने को हमें नगर पालिका का एक बड़ा सा मकान मिला था। सिविल लाइन में एकदम मेन रोड पर। और सबसे बड़ी खासियत यह कि घर के सामने ही शहर का सबसे बड़ा और भव्य नटराज सिनेमा हाल और उससे थोड़ी ही दूरी पर इलाइट सिनेमा हाल, जिसके नाम पर ही शहर के सबसे बड़े और व्यस्त चौराहे का नाम इलाइट चौराहा पड़ा था। लक्ष्मीबाई की स्मृति में बना लक्ष्मीबाई पार्क और रानी का भव्य दुर्ग घर से चंद कदमों की दूरी पर ही था। मशहूर अखबार दैनिक जागरण भी नगर पालिका कंपाउण्ड से काफी नज़दीक था। हमारे घर के आसपास ही और भी बहुत सी महत्वपूर्ण चीजें मौजूद थी। बेशक इन सबका हमारे लिये खास आकर्षण था। इन सबके बावजू़द, प्रथम दृष्ट्या बहराइच की तुलना में यह शहर हमें बहुत कम पसंद आया। बहुत सारी अनूठी बातें होते हुए भी बेतरतीबी और पुराने ढंग से बसे, संकरी गलियों और पतली सड़कों के इस पथरीले शहर ने कुल मिलाकर हमें निराश ही किया था। इसका एक कारण शायद यह भी था कि बहराइच में बिताया गया अनमोल बचपन, बचपन के प्रिय बाल सखा और बाल जीवन की भव्यता हमारे दिल-दिमाग से नहीं निकल पा रही थी।


यहां मेरा और मझले भैया मुन्ना जी का दाखिला लक्ष्मीबाई पार्क के पास स्थित सरस्वती पाठशाला इंड. इंटर कॉलेज में हुआ। बाकी सभी भाई-बहनों का भी उनके-उनके हिसाब से विभिन्न स्कूल/कॉलेजों में एडमीशन हो गया था। नगर पालिका में कार्यरत युवा और एनर्जि़क श्री सियाशरण गुप्ता जी की नज़र में जब मेरी अन्य कलाकारी आई तो वह मुझसे बहुत ज़्यादा प्रभावित रहने लगे थे। अक्सर ऑफिस के बाद वह मुझे पचकुइयां मंदिर के पास स्थित अपने घर ले जाते और उनके घर मुझे बुंदेली स्वादिष्ट भोजन का स्वाद भी मिलता। उनके यहां पहली बार मैंने दाल में चीनी का रुचिकर बुंदेली प्रयोग देखा था। 

उन्ही के ज़रिये मेरी और मेरे परिवार की जान-पहचान झांसी के पुराने शहर में भी बढ़ती चली गई थी। उन्हीं दिनों हमारा पंचकुइयां मंदिर के पास ही रहने वाले श्री सक्सेना जी और उनके परिवार से भी परिचय हुआ। लगभग दर्जन भर लोगों का बहुत बड़ा परिवार था उनका। भाई-बहनो की पूरी फौज परन्तु सभी गीत-संगीत और नृत्य आदि किसी न किसी कलाकारी में अव्वल। सक्सेना जी पास ही स्थित राजेन्द्र प्रसाद स्कूल से संबद्ध थे और उनका एक संगीत का स्कूल भी चलता था, जिसमें उनकी बेटियां ममता, मोहिनी आदि भी संगीत की शिक्षा में सहयोग देती थीं। उनसे पारिवारिक रिश्ते में बंधने के बाद, पढ़ाई के साथ-साथ मुझे भी अक्सर वहां जाने का अवसर मिलने लगा था।

06 मई,2018 (शेष अगली किस्त में)

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