रविवार, 9 सितंबर 2018

उन्तीसवीं किस्तः खोई हुयी प्रतिष्ठा की तलाश में


       झाँसी में शिफ्ट हुए हुए काफी दिन हो गये थे परन्तु हमारा मन तो अभी भी बहराइच में ही अटका हुआ था। वहां की बाल सखाओं के साथ की मस्ती, जीआईसी और समूचे शहर में अपने गायन की वजह से चर्चित और गुरुजनों का चहेता। झाँसी में अभी तक मुझे वह माहौल नहीं मिल पाया था। कहने को जब पिता जी के झांसी ट्रांस्फर की खबर बहराइच वालों को मिली थी तब झाँसी के मुंबई रूट पर होने के कारण ज़्यादातर लोगों की स्थानीय जु़बान में यही चर्चा थी कि ‘ई किशोरवा के कदम तो अब सीधे बम्बई फिल्म इंडस्टी में ही जाये के रुकिहैं।’ परन्तु बहराइच से काफी बड़ा और कमिश्नरी होने तथा बहराइच की तुलना में मुंबई के कुछ नज़दीक होने के बावजू़द झाँसी फैशन के मामले में भी काफी पिछड़ा हुआ था। यहाँ तक कि फैशन का मारा जब मैं उस समय की बेलबाॅटम या राजेश खन्ना (तब राजेश खन्ना की फिल्मों और उस दौर के फैशन के  हम भी दीवाने हुआ करते थे)  जैकेट पहन कर घर से बाहर निकलता तो मुझ पर लड़कियों का ड्रेस पहनने की तोहमत लगती और कालेज के अध्यापक जी मेरे जैकेट को ब्लाउज की संज्ञा देते हुए मेरी अक्सर धुनाई भी कर देते। कभी मेरी किसी बात पर नाराज़ होते तो मेरे हिप्पीनुमा बालों (उस वक्त ऐसे बालों का ही प्रचलन था) को भी चुटिया कहकर खींचते और मुझे धमका देते। 

       मैंने जब यह बात अपने घर पर बताई और बात नगर पालिका के सियाशरण भाई साहब तक पहुंची तो उन्होंने इसका समाधान भी खोज डाला। गुरु जी उनके घर के पास ही रहते थे और उनकी जान-पहचान के भी थे अतः सिया भाई साहब ने उनके यहाँ मेरी ट्यूशन ही लगवा दी। और फिर क्या था आश्चर्यजनक रूप से गुरु जी का रवैया भी अचानक मेरे प्रति बदल गया था। अब उन संभ्रान्त गुरु जी को मेरी किसी जानी-अन्जानी ग़ल्तियों पर कोई खुन्दक नहीं आती। और अब उन्हें न तो मेरी ग़ल्तियां दिखतीं न मेरे लम्बे बाल और न ब्लाउज़ जैसी जैकेट। हालाँकि उन गुरु जी की गणना काॅलेज के श्रेष्ठ गुरुओं में होती थी और उनका घर में सुबह चार बजे से उठकर बच्चों को पढ़ाने बैठ जाना उनके कद को और बढ़ाता था। अतः हो सकता है उन्हें मुझमें ही कोई कमी या शरारत दिखी हो जिससे वह मेरे प्रति उग्र हुए होंगे। इन सब बातों से मुझे अपना स्कूली जीवन कुछ नीरस लगने लगा था और मेरा  पढ़ाई से भी जी उचटने लगा था।


09 सितम्बर,2018 (शेष अगली किस्त में)

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