गुरुवार, 23 अक्तूबर 2014

सातवीं किस्तः

गायिकी से बचाव

पांचवीं करने के बाद मुन्ना भैया का एडमीशन बहराईच के गवर्नमेंट इंटर कालेज में हो गया था। उस समय (अब का पता नहीं) गवर्नमेंट इंटर कॉलेज पढ़ाई-लिखाई ही नहीं प्रायः हर मामले में सबसे अव्वल हुआ करता था। उसमें प्रवेश की प्रकिया भी उस वक्त के हिसाब से काफी जटिल थी। तब वहां बिना अच्छे नंबर लाये छठी क्लास में एडमीशन मिलना मुश्किल होता था। परन्तु मुन्ना भैया की गिनती उस समय पढ़ाकू छात्रों में होती थी अतः उन्हें उसमें प्रवेश मिलने में कोई खास जददो-ज़हद नहीं करनी पड़ी थी। अगले साल ही घसीट-घसाट के मैं भी राजकीय इंटर कॉलेज में पहुंच गया था। मैं पढ़ाई में मुन्ना भैया की तरह बहुत तेज़ नहीं था पर रट्टू तोता होने के कारण प्रवेश परीक्षा निकाल ले गया था। तब की पढ़ाई आज की तरह इतनी दुरूह भी नहीं थी। छठी कक्षा में हमें एक बार फिर से ए बी सी डी व क ख ग घ की रट लगानी पड़ी। जीआईसी में पहले साल से ही सुमधुर गायन के कारण मेरी व मुन्ना भैया की तूती बोलने लगी थी। यद्यपि मुन्ना भैया की आवाज़ मुझसे कहीं अधिक अच्छी थी परन्तु मुझे अपनी पतली और मीठी आवाज़ का ज्यादा फायदा मिला और कॉलेज में मेरी गिनती अव्वल दर्जे के गवैये के रूप में होने लगी थी। बताते हैं कि उस समय पतली व मधुर आवाज़ होने के कारण लोग मुझे जुनियर लता के नाम से जानने लगे थे। छठी में एक विषय के रूप में हमने संगीत विषय भी लिया था। श्रीवास्तव मास्साब हमें संगीत सिखाते थे। कॉलेज में जब भी कोई संगीत या नाटक का कार्यक्रम होता हमें क्लास से बुलवा लिया जाता। स्कूलों की जनपदीय युवक समारोह और संगीत की प्रतियोगिताएं के अवसर पर तो प्रायः हम कई-कई दिनों तक कक्षा से गायब रहकर गाने-बजाने के रिहर्सल में ही लगे रहते थे। ऐसे में पढ़ाई से कुछ दिनों के लिये छुटकारा पाकर मुझे खासकर काफी राहत मिलती थी। मुझे गाने में अव्वल रहने का एक फायदा और मिलता था मेरे अध्यापकगणों की मुझ पर विशेष कृपा रहती थी। मैं अपना होमवर्क करके न लाऊं या किसी सवाल का सही जवाब न दे पाऊं तो इन्हीं बातों पर पूरी क्लास पिट जाती थी पर मैं बचा रह जाता था। बच्चों की गलतियों पर पिटाई करते समय हिंदी के श्रीवास्तव मास्साब और गणित के जायसवाल मास्साब (शायद यही नाम था) प्रायः मेरे विपरीत के कोने से बच्चों की पिटाई करना शुरू करते। अक्सर मेरा नंबर आने तक या तो अगले क्लास के लिय घंटा बज जाता या मेरी मासूम शक्ल पर अध्यापकद्वय को तरस आ जाता अथवा यूं कहिये कि मेरी गायिकी का प्रभाव। मेरे द्वारा समर्पण की मुद्रा और दयनीय सूरत बनाते हुए हाथ आगे किये जाने पर भी उनकी छड़ी बीच राह में ही रुक जाती थी। और मैं प्रायः हर बार पिटने से बचा रह जाता था।           

23 अक्तूबर,14
(शेष अगली किस्त में)  

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